धार्मिक उन्माद भड़काने वालों पर हो सख्ती
- साम्प्रदायिक तनाव की हर घटना के बाद एहतियाती उपाय भी खूब होते हैं लेकिन इस अहम सवाल का जवाब हमेशा छूट जाता है कि आखिर दंगों की ऐसी आग, आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों को क्यों झुलसाने लगी है?
देश में दंगों की आग कब और कहां भडक़ जाए, यह कोई नहीं जानता। खास तौर पर धार्मिक जुलूस निकालने को लेकर छिड़ा कोई विवाद जब साम्प्रदायिक तनाव में बदल जाए तो फिर हिंसा की आग बेकाबू होते देर नहीं लगती। हरियाणा के जिला नूंह में धार्मिक शोभायात्रा पर पथराव के बाद भडक़ी साम्प्रदायिक हिंसा ने जो विकराल रूप लिया है वह भयावह तो है ही, यह सवाल भी छोड़ता है कि कानून-व्यवस्था को चुनौती देते हुए साम्प्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने की ऐसी घटनाएं आखिर थम क्यों नहीं रही हैं? क्यों प्रशासन अराजक तत्वों के आगे इतना बेबस हो जाता है?
यह सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ऐसी घटनाओं में हर बार जान-माल का नुकसान सरकारी दस्तावेज में सिर्फ आंकड़ा बन कर ही रह जाता है। नूंह के दंगों की आग ने जो विकराल रूप लिया, उसके चलते वहां कफ्र्यू लगाने की नौबत आ गई है। हरियाणा के छह जिलों में निषेधाज्ञा लगाने के साथ-साथ हरियाणा से सटे राजस्थान के भरतपुर में भी अलर्ट जारी करना पड़ा है। नूंह दंगों की आंच गुरुग्राम तक जा पहुंची है जहां एक धार्मिक स्थल को भीड़ ने आग के हवाले कर दिया जिसमें एक जने की मौत हो गई।
साम्प्रदायिक तनाव की हर घटना के बाद एहतियाती उपाय भी खूब होते हैं लेकिन इस अहम सवाल का जवाब हमेशा छूट जाता है कि आखिर दंगों की ऐसी आग, आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों को क्यों झुलसाने लगी है? दूसरा सवाल यह भी कि ऐसी साम्प्रदायिक हिंसा के लिए दोषी किसे ठहराया जाए? नूंह के मामले को भी बारीकी से समझा जाए तो लगता है कि प्रशासन और पुलिस ने इस धार्मिक जुलूस को लेकर सोशल मीडिया पर हो रही बयानबाजी को गंभीरता से नहीं लिया। संवेदनशील इलाकों में धार्मिक जुलूस की अनुमति देने से पहले जो पड़ताल की जानी चाहिए वह आखिर क्यों नहीं की गई? नूंह ही नहीं, बल्कि ऐसे सभी मामलों में सरकार में बैठे लोगों को इन सवालों के जवाब गंभीरता से तलाशने होंगे। एक बात और, ऐसे दंगों के बाद राजनेताओं और धर्म के ठेकेदारों के बयानों पर भी नजर रखनी होगी जो बेवजह समुदायों को उकसाने का काम करते हैं।