भारतीय यूनीफाईड पेमेंट इंटरफेस को कई देश अपनाने को तैयार हो गए हैं। भारत के पड़ौसी देश श्रीलंका ने भी अभी हाल ही में यूपीआई को अपना लिया है। पूर्व में, भारत और श्रीलंका की सरकारों के बीच इस सम्बंध में सहमति बन गई थी। फ्रान्स, संयुक्त अरब अमीरात और सिंगापुर ने पहिले ही भारतीय यूपीआई को अपना लिया है। इससे भारत के नागरिकों एवं यूपीआई अपनाने वाले अन्य देशों के बीच रुपए का लेनदेन आसान हो जाएगा। आम नागरिकों को इससे बहुत फायदा होगा क्योंकि रुपए को पहिले अमेरिकी डॉलर में बदलकर फिर अन्य देशों की मुद्रा में परिवर्तन करने के अतिरिक्त खर्च से बचा जा सकेगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने भारत आने वाले सभी यात्रियों को यूपीआई के माध्यम से भुगतान करने की सलाह दी है ताकि रुपए के उपयोग को बढ़ावा मिल सके।
विभिन्न देशों के बीच विदेशी व्यापार के व्यवहारों का निपटान करने हेतु उत्पादों का आयात एवं निर्यात करने वाले देशों को आपस में स्वीकार्य मुद्रा की आवश्यकता होती है। प्राचीन काल में विदेशी व्यापार के व्यवहारों का निपटान स्वर्ण मुद्राओं में किया जाता था। वर्ष 1945 में ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर विभिन्न देशों द्वारा विदेशी व्यापार के व्यवहारों के निपटान हेतु उस समय की मजबूत मुद्रा ब्रिटिश स्टर्लिंग पौंड को स्वीकार किया गया था। परंतु, कालांतर में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बनने के चलते अमेरिकी डॉलर ने ब्रिटिश स्टर्लिंग पोंड का स्थान ले लिया है, जो आज भी जारी है। आज भी अमेरिकी डॉलर पूरे विश्व में एक मजबूत मुद्रा बना हुआ है और विशेष रूप से कोरोना महामारी एवं रूस यूक्रेन युद्ध के बाद से अमेरिकी डॉलर की कीमत अन्य देशों की मुद्रा की कीमत की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। एक अमेरिकी डॉलर आज 82 रुपए का हो गया है।
दरअसल अमेरिकी डॉलर की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में हाल ही के समय में बहुत बढ़ी है। एक तो, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बहुत तेज गति से बढ़ी हैं, प्रायः समस्त देश अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की खरीद का भुगतान अमेरिकी डॉलर में ही करते हैं जिसके कारण अमेरिकी डॉलर की मांग भी बढ़ी है और जिसके चलते अमेरिकी डॉलर की कीमत में भी वृद्धि दर्ज हुई है। दूसरे, अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में मुद्रा स्फीति की दर 10 प्रतिशत के आसपास (अमेरिका में 9.1 प्रतिशत) पहुंच गई थी, जो कि इन देशों में पिछले 40-50 वर्षों में सबसे अधिक महंगाई की दर है। महंगाई पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से इन देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि की जा रही है, जिसके कारण इन देशों द्वारा जारी किए जाने वाले बांडस पर प्रतिफल बहुत आकर्षित हो रहे है एवं विदेशी निवेशक विकासशील देशों से अपना निवेश निकालकर अमेरिकी बांडस में अपना निवेश बढ़ाते जा रहे हैं। जिन विकासशील देशों से डॉलर का निवेश निकाला जा रहा है उन देशों के विदेशी मुद्रा के भंडार कम होते जा रहे हैं जिससे उनकी अपनी मुद्रा पर दबाव आ रहा है और डॉलर की स्थिति लगातार मजबूत होती जा रही है।
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