आफत में आसाराम: बलात्कार के मामले में उम्रकैद की सज़ा
दुष्कर्म मामले में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे संत आसाराम बापू को गांधीनगर की एक अदालत ने महिला शिष्या से दुष्कर्म के एक मामले में दोषी क़रार दिया है.
आसाराम को इस मामले में उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई है. आसाराम के वकील सीबी गुप्ता ने बीबीसी को बताया, ”आसाराम बाबू को एडिशनल सेशन जज डीके सोनी ने 2013 से जुड़े रेप केस में उम्रकैद की सज़ा सुनाई है.”
गुप्ता ने बताया कि वो अदालत के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट जाएंगे.
इससे पहले सोमवार को सत्र अदालत के जज डीके सोनी ने सोमवारहालांकि इस मामले में सबूतों के अभाव में आसाराम की पत्नी समेत छह अन्य अभियुक्तों को अदालत ने बरी कर दिया गया.
स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर आरसी कोडेकर के मुताबिक़ आसाराम को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (सी) (यानी बलात्कार), धारा 377 (अप्राकृतिक यौन अपराध) और अन्य प्रावधानों के तहत पीड़िता के अवैध हिरासत के लिए दोषी ठहराया गया है.
वहीं आसाराम के वकील सीबी गुप्ता ने कहा कि, ‘इसे 2001 की घटना कहा जा रहा है, लेकिन इसकी शिकायत 2013 में दर्ज हुई है. सज़ा के बाद हमलोग विचार-विमर्श करके हाईकोर्ट में अपील दाख़िल करेंगे
क्या है ये मामला, दस साल से जेल में बंद आसाराम
सूरत की एक महिला ने 2013 में आसाराम बापू और सात अन्य लोगों के ख़िलाफ़ बलात्कार और अवैध रूप से बंधक बनाने का मामला दर्ज कराया था. अभियुक्तों में से एक की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी.
पुलिस ने इस मामले में जुलाई, 2014 में चार्जशीट दायर की थी. अहमदाबादा के चांदखेड़ा पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक आसाराम ने 2001 से 2006 के बीच पीड़िता महिला से अहमदाबाद शहर के बाहरी इलाके में स्थित आश्रम में कई बार दुष्कर्म किया गया था.
25 अप्रैल, 2018 को जोधपुर अदालत ने ख़ुद को धर्मगुरू बताने वाले आसाराम बापू को एक नाबालिग से बलात्कार के मामले में दोषी क़रार दिया है और आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी. सजा सुनाए जाने से पांच साल पहले से आसाराम जेल की सलाखों में बंद हैं.
यानी कुल मिलाकर देखें तो पिछले 10 सालों से आसाराम जेल में बंद हैं.

कौन हैं आसाराम?
अप्रैल 1941 में मौजूदा पाकिस्तान के सिंध इलाके के बेरानी गांव में पैदा हुए आसाराम का असली नाम असुमल हरपलानी है.
सिंधी व्यापारी समुदाय से संबंध रखने वाले आसाराम का परिवार 1947 में विभाजन के बाद भारत के अहमदाबाद शहर में आ बसा.
साठ के दशक में उन्होंने लीलाशाह को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाया. बाद में लीलाशाह ने ही असुमल का नाम आसाराम रखा.
1972 में आसाराम ने अहमदाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर मुटेरा कस्बे में साबरमती नदी के किनारे अपनी पहली कुटिया बनाई.
यहाँ से शुरू हुआ आसाराम का आध्यात्मिक प्रोजेक्ट धीरे-धीरे गुजरात के अन्य शहरों से होता हुआ देश के अलग-अलग राज्यों में फैल गया.
शुरुआत में गुजरात के ग्रामीण इलाक़ों से आने वाले ग़रीब, पिछड़े और आदिवासी समूहों को अपने ‘प्रवचनों, देसी दवाइयों और भजन कीर्तन’ की तिकड़ी परोस कर लुभाने वाले आसाराम का प्रभाव धीरे-धीरे राज्य के शहरी मध्यवर्गीय इलाक़ों में भी बढ़ने लगा.

शुरुआती सालों में प्रवचन के बाद प्रसाद के नाम पर वितरित किए जाने वाले मुफ़्त भोजन ने भी आसाराम के ‘भक्तों’ की संख्या को तेज़ी से बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आसाराम की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार एक समय दुनिया भर में उनके चार करोड़ अनुयायी थे.
इन अनुयायियों के दम पर आसाराम ने अपने बेटे नारायण साई के साथ मिलकर देश-विदेश में फैले अपने 400 आश्रमों का साम्राज्य खड़ा कर लिया.

1972 में आसाराम ने अहमदाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर मुटेरा कस्बे में साबरमती नदी के किनारे अपनी पहली कुटिया बनाई.
यहाँ से शुरू हुआ आसाराम का आध्यात्मिक प्रोजेक्ट धीरे-धीरे गुजरात के अन्य शहरों से होता हुआ देश के अलग-अलग राज्यों में फैल गया.
शुरुआत में गुजरात के ग्रामीण इलाक़ों से आने वाले ग़रीब, पिछड़े और आदिवासी समूहों को अपने ‘प्रवचनों, देसी दवाइयों और भजन कीर्तन’ की तिकड़ी परोस कर लुभाने वाले आसाराम का प्रभाव धीरे-धीरे राज्य के शहरी मध्यवर्गीय इलाक़ों में भी बढ़ने लगा.

शुरुआती सालों में प्रवचन के बाद प्रसाद के नाम पर वितरित किए जाने वाले मुफ़्त भोजन ने भी आसाराम के ‘भक्तों’ की संख्या को तेज़ी से बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आसाराम की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार एक समय दुनिया भर में उनके चार करोड़ अनुयायी थे.
इन अनुयायियों के दम पर आसाराम ने अपने बेटे नारायण साई के साथ मिलकर देश-विदेश में फैले अपने 400 आश्रमों का साम्राज्य खड़ा कर लिया.

आसाराम के पास इतने आश्रमों के साथ-साथ तक़रीबन 10 हज़ार करोड़ रुपये की संपत्ति भी है जिसकी जाँच फ़िलहाल केंद्रीय और गुजरात राज्य के कर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय कर रहे हैं.
इस जांच में आश्रम निर्माण के लिए ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से ज़मीन हड़पने के मामले भी शामिल हैं.
आसाराम का राजनीतिक प्रभाव
भक्तों की संख्या बढ़ने के साथ ही राजनेताओं ने भी आसाराम के ज़रिए एक बड़े वोटर समूह में पैठ बनाने का प्रयास किया.
1990 से लेकर 2000 के दशक तक उनके भक्तों की सूची में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के लालकृष्ण आडवाणी और नितिन गडकरी जैसे दिग्गज नेता शामिल हो चुके थे.
इस सूची में दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और मोतीलाल वोरा जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी शामिल रहे.

भाजपा के वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त आसाराम के ‘दर्शन’ के लिए जाती रही है. इस फ़ेहरिस्त में शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, रमण सिंह, प्रेम कुमार धूमल और वसुंधरा राजे के नाम शामिल हैं.
2000 के दशक के शुरुआती सालों में आसाराम के ‘दर्शन’ के लिए जाने वाला सबसे बड़ा नाम भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है.
लेकिन 2008 में आसाराम के मुटेरा आश्रम में दो बच्चों की हत्या का मामला सामने आते ही लगभग हर राजनीतिक दल के नेताओं ने उनसे दूरी बना ली.
सकते हैं.

14 अगस्त को पीड़िता का परिवार आसाराम से मिलने उनके जोधपुर आश्रम पहुँचा.
मुकदमे में दायर चार्जशीट के अनुसार, आसाराम ने 15 अगस्त की शाम 16 साल की बच्ची को ‘ठीक’ करने के बहाने से अपनी कुटिया में बुलाकर बलात्कार किया.
पीड़िता के परिवार की मानें तो उनके लिए यह घटना उनके भगवान के भक्षक में बदल जाने जैसी ही थी. इस परिवार ने सुनवाई के बीते पांच साल अपने घर में नज़रबंद बंधकों की तरह बिताए हैं.
परिवार के मुताबिक़ उन्हें रिश्वत की पेशकश की गई और जान से मार देने की धमकी भी दी गई, लेकिन वे अपने से कई गुना ज़्यादा प्रभावशाली आसाराम के ख़िलाफ़ जारी अपनी न्यायिक लड़ाई में डटे रहे.