आचार्य लोकेशजी ने G20 अंतरधार्मिक सम्मेलन में ‘जलवायु परिवर्तन’ विषय पर संबोधित किया
पुणे, 05.09.2023: पुणे की MIT वर्ल्ड पीस युनिवेर्सिटी द्वारा 5-7 सितम्बर, 2023 को आयोजित हो रहे त्रिदिवसीय G20 अंतरधार्मिक सम्मेलन के समापन समारोह दिवस पर जलवायु परिवर्तन विषय पर अहिंसा विश्व भारती व विश्व शांति केंद्र के संस्थापक आचार्य डॉ. लोकेशजी सहित इंडोनेशिया के मुस्लिम विश्वविद्यालय से समागत प्रोफेसर डॉ. मुहम्मद हत्ता फत्ताह, ए.सी.डब्ल्यु.ए.वाई. से श्री ग्रेश्मा पायस राजू, बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय, वाराणसी से समागत प्रो. डॉ. मल्लिकार्जुन जोशी, इसरो बैंग्लोर से समागत डॉ. आलोक श्रीवास्तव ने मुख्य रूप से संबोधित किया । इस सत्र में आमंत्रित सभी महानुभावों ने आचार्य लोकेशजी द्वारा विषय पर चर्चा को वैश्विक समस्या के समाधान का मार्ग प्रशस्त करने वाला बताया जिससे भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परम्परा का भी गौरव बढ़ा है।
इस अवसर पर, MIT वर्ल्ड पीस युनिवेर्सिटी की ओर से ‘दी क्लाइमेट चेंज’ विषय पर फिल्म का प्रसारण भी किया गया। जिसकी सभी उपस्थित अतिथियों ने काफी प्रशंसा की।
अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक विश्व शांतिदूत जैन आचार्य डॉ. लोकेशजी ने G20 अंतरधार्मिक सम्मेलन में ‘जलवायु परिवर्तन’ विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि जैन धर्म दुनिया में सबसे अधिक पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने वाला धर्म है| भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित शतजीवनिकाय सिद्धांत प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के बारे में बात करता है | जैन आगमों ने प्रकृति को एक अद्वितीय तरीके से दर्शाया है वह कहते है कि प्रकृति के पांच तत्व पृथ्वी (भूमि, मिट्टी, पत्थर आदि), जल (जल संसाधन व बादल ), अग्नि (अग्नि), वायु (वायु) और आकाश (आकाश) जीवित प्राणी हैं इन्हें जीवित प्राणियों की तरह माना जाना चाहिए | ये पांच प्रकार के तत्व वनस्पति, पेड़ और पौधे, पक्षी और जानवरों जैसे पाँच वर्ग के प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं | जैन धर्म की अवधारणा अपने अनुयायियों को किसी भी प्राणी को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रतिबंधित करती है और अंततः सीमित खपत के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा में सहायता भी करती है|
ए.सी.डब्ल्यु.ए.वाई. से श्री ग्रेश्मा पायस राजू ने कहा कि हमारा ग्रह एक अस्तित्वगत खतरे का सामना कर रहा है, और यह अनिवार्य है कि हम जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए अभी कार्य करें। जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई के लिए एक अंतर्धार्मिक आह्वान समय की मांग है।
इंडोनेशिया के मुस्लिम विश्वविद्यालय से समागत प्रोफेसर डॉ. मुहम्मद हत्ता फत्ताह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जिसके लिए सामूहिक समाधान की आवश्यकता है। यह किसी एक क्षेत्र, देश या धर्म तक सीमित नहीं है। हम सभी इसमें एक साथ हैं।
बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय, वाराणसी से समागत प्रो. डॉ. मल्लिकार्जुन जोशी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी प्रतिक्रिया करुणा, सहानुभूति और आने वाली पीढ़ियों के प्रति जिम्मेदारी के हमारे साझा मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए।
इसरो बैंग्लोर से समागत डॉ. आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि हमें तत्काल नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना चाहिए और अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करना चाहिए। यह न केवल पर्यावरणीय जिम्मेदारी का मामला है, बल्कि ग्रह और इसके निवासियों के प्रति नैतिक दायित्व भी है।
इस अवसर पर, कार्यक्रम का स्वागत भाषण MIT वर्ल्ड पीस युनिवेर्सिटी के प्रो. डॉ. प्रसाद कुल्कर्णी एवं प्रो. डॉ. पंकज कोपारडे ने संयुक्त रूप से किया एवं संचालन डॉ. राजश्री जोशी द्वारा किया गया।