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वोट दीजिए, आनंद लीजिए (व्यंग्य)

यह अलग बात है कि चुनावी मेले में बेरोज़गारी, पर्यावरण, पानी की कमी जैसे कितने ही कमज़ोर मुद्दे हमेशा चित हो जाते हैं। यह बात भी अलग है कि युवा वोटर वोट देने में कम दिलचस्पी ले रहा है। इसमें उनकी गलती नहीं मुद्दों की बदकिस्मती है।

‘वोट दीजिए, आनंद लीजिए’ योजना लेकर राजनीति, सड़क, गली और मोहल्ले में फिर हाज़िर है। नेता अपनी पसंद का देश, प्रदेश, क्षेत्र, धर्म और समाज का निर्माण कर रहे हैं। समझदार वोटर चुनाव के दिनों में कुछ न कुछ हासिल ज़रूर हासिल कर लेते हैं क्यूंकि चुनाव के बाद के परिदृश्य का अंदाज़ा लगाना समय नष्ट करना है। हालांकि वोट देने वाले नागरिक अपना बेहद कीमती वोट, बहुत सोच समझ कर, ईमानदारी से देकर लोकतान्त्रिक कर्तव्य का पालन प्रतिबद्धता के साथ करते हैं।

यह अलग बात है कि चुनावी मेले में बेरोज़गारी, पर्यावरण, पानी की कमी जैसे कितने ही कमज़ोर मुद्दे हमेशा चित हो जाते हैं। यह बात भी अलग है कि युवा वोटर वोट देने में कम दिलचस्पी ले रहा है।  इसमें उनकी गलती नहीं मुद्दों की बदकिस्मती है। सौ प्रतिशत वोटिंग करवाने के लिए अनेक प्रयासों के बावजूद वोटिंग प्रतिशत घट रहा है। बढ़ती जनसंख्या के बावजूद वोट न देने वाले भी बढ़ते जाते हैं। वोट डलवाने के नेक काम में धर्म की सक्रिय भूमिका का स्वर्णिम इतिहास रहा है। धर्म चाहे तो लाखों वोट दिलवा सकता है और चाहे तो न देने को प्रेरित भी कर सकता है।

 

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क्या ज़माना था जब चंद बंदे कुछ देर में ही पूरा बूथ नरम कर देते थे। वोट ज्यादा डाले जाने के लिए संजीदा उपाय करने की बहुत ज़रूरत है। युवा वोटरों को वोट डालने के बाद छोटा पिज्जा, चाकलेट, चिप्स या कोल्ड ड्रिंक दिए जाने का प्रबंध हो। रेड कारपेट से दूर डीजे भी लगा दिया जाए तो वोटर नाच भी लेंगे और वोट भी देंगे। ज़्यादा वोटों वाले बूथ के पडोस में चियर लीडर्ज का हिलना डुलना भी हो तो स्वदेशी संस्कृति प्रेमी राजनीतिज्ञ और अधिकारी दिल से ज़्यादा मेहनत करेंगे। थकावट भी साथ साथ उतरती रहेगी ।

वोट डालने के लिए प्रसिद्ध हस्तियों द्वारा विज्ञापन की जगह ज़्यादा व्यवहारिक उपाय किए जाने ज़रूरी हैं। कई संजीदा मामलों में विज्ञापनों से भी सोच नहीं बदलती। हमारी पारम्परिक संस्कृति उत्सव प्रिय होने के साथ उपहार प्रिय भी है। इतिहास में दर्ज है, त्योहारों के दिनों व नववर्ष पर भेंट की गई मिठाई और उपहार, हर कुछ क्या सब कुछ करवाने की कुव्वत रखते हैं। वोटिंग बहुत ज्यादा करवाना चाहते हैं तो उपहार आनंद योजना विकसित की जा सकती है।

 

सब जानते हैं कि वोट लेने के लिए कई दशकों से अनेक सफल योजनाएँ पहले से जारी हैं। मुफ्त का माल हो और अच्छी तरह से पच जाए इस पर अतिरिक्त होम वर्क करने की ज़रूरत है। मुस्कुराहट भी मुफ़्त न मिलने के ज़माने में, लोकतंत्र को अत्याधिक समृद्ध करने के लिए भारतीय संस्कृति की समृद्ध नीति और रीतियों को आधार बनाकर ‘वोट दीजिए आनंद लीजिए’ जैसी योजना निश्चित रूप से देश का भविष्य समृद्ध कर सकती है।

Sabhar: Prabha sakshi

MEERA JHA

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