प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन और चार सितंबर को ब्रुनेई दौरे पर हैं. ब्रुनेई के बाद पीएम मोदी चार सितंबर को सिंगापुर जाएंगे.
नरेंद्र मोदी इस छोटे से एशियाई देश ब्रुनेई जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने. इस दौरान तीन सितंबर को पीएम मोदी ने ऐतिहासिक अली सैफ़ुद्दीन मस्जिद का भी दौरा किया.
दोनों देशों के बीच इस दौरान हिंद महासागर क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने पर बात हुई है.
इस मौक़े पर पीएम मोदी का स्वागत धार्मिक मामलों के मंत्री पेहिन डाटो उस्ताज़ हाजी अवांग बदरुद्दीन ने किया.
पीएम मोदी ने जिस मस्जिद का दौरा किया, वो ब्रुनेई के 28वें सुल्तान उमर अली सैफ़ुद्दीन-तृतीय के नाम पर है. इस मस्जिद का निर्माण 1958 में पूरा हुआ था.
ब्रुनेई पहुँचने पर पीएम मोदी ने भारतीय उच्चायोग में बने नए परिसर का उद्घाटन किया.
पीएम मोदी ने ब्रुनेई में रह रहे भारतीयों को दोनों देशों के बीच एक सेतु की तरह जोड़ने वाला बताया.
भारतीय सबसे पहले 1920 के दौर में ब्रुनेई तेल की खोज में पहुंचे थे. आज क़रीब साढ़े चार लाख की आबादी वाले इस देश में 14 हज़ार भारतीय रहते हैं.
ब्रुनेई के शिक्षा और मेडिकल क्षेत्र में भारतीयों के योगदान को अहम माना जाता है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, भारत और ब्रुनेई के बीच क़रीब 25 करोड़ डॉलर का कारोबार होता है. इसमें बड़ी हिस्सेदारी हाईड्रोकार्बन्स की है.
ब्रुनेई एशियाई देश है.
कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर के पास बसे इस छोटे से देश की आबादी चार लाख 61 हज़ार के क़रीब है. इस आबादी में दो तिहाई मुस्लिम हैं.
यहां मलय भाषा बोली जाती है. ब्रुनेई की राजधानी बंदर सिरी बेगावन है.
बोर्नियो द्वीप पर स्थित ब्रुनेई में सुल्तान हसनल का शासन है.
1888 में ब्रुनेई पर ब्रिटेन का शासन शुरू हुआ. 1929 में यहां तेल निकालना शुरू हुआ और यहीं से इस देश की तक़दीर बदलने की शुरुआत हुई. तेल और गैस के निर्यात से ये देश बहुत सम्पन्न होता गया.
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उमर अली सैफ़ुद्दीन-तृतीय ब्रुनेई के सुल्तान बने. 1963 में ब्रुनेई ने तय किया कि वो फेडरेशन ऑफ मलेशिया का हिस्सा नहीं बनेगा.
1984 में ब्रुनेई आज़ाद हुआ.
2014 में ब्रुनेई पहला पूर्वी एशियाई देश बना, जहां शरिया क़ानून लागू हुआ. इस फ़ैसले की तब कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने आलोचना की.
2019 में एक ऐसा क़ानून ब्रुनेई में लागू किया गया, जिसके तहत समलैंगिक संबंध बनाने पर पत्थर मारकर मौत की सज़ा दिए जाने का प्रावधान था.
तब इस क़दम की काफ़ी आलोचना हुई थी और इस फ़ैसले को वापस ले लिया गया था.
ब्रुनेई के सुल्तान इनवेस्टमेंट एजेंसी के मुखिया भी हैं. इस एजेंसी के पोर्टफ़ोलियो में दुनिया के शीर्ष होटलों में शुमार लंदन में डोरचेस्टर और लॉस एंजलिस का बेवर्ली हिल्स होटल शामिल है.
ब्रुनेई कैसा देश है?
साल 2019 में बीबीसी संवाददाता जोनाथन हेड ने ब्रुनेई का दौरा किया था. अपनी रिपोर्ट में जोनाथन ने बताया था कि ये देश कैसा है और यहां के लोगों की ज़िंदगी कैसी है.
सड़क किनारे पेड़, पैदल चलने के लिए चौड़ी सड़कें और बढ़िया तरीके से बने शहर. पहली झलक में लगता है कि ये सिंगापुर है.
ब्रुनेई में बनी मस्जिदें आलीशान हैं. जहाँ अरबी में लिखे साइनबोर्ड और सुल्तान हसनअल बोल्किया की तस्वीरें आपको आसानी से दिख जाते हैं.
ब्रुनेई उन कुछ देशों में है, जहां अब भी राजशाही है. इसके तहत ब्रुनेई के सुल्तान के पास पूरी ताक़त होती है.
ब्रुनेई पहले एक ब्रिटिश कॉलोनी और फिर 1984 तक संरक्षित राज्य था. आज़ादी के बाद सुल्तान ही मलय मुस्लिम साम्राज्य का विचार लेकर आए.
यह विचार अब ब्रुनेई के दर्शन में घुल चुका है. ब्रुनेई की सरकार इसे “मलय भाषा”, मलय संस्कृति-रिवाजों, इस्लामी क़ानून, मूल्यों, शिक्षा और राजशाही व्यवस्था का मिश्रण कहती है, जिसका पालन सबके लिए अनिवार्य है.”
ब्रुनेई में असहमति के लिए जगह नहीं है जबकि सभी ब्रुनेईवासी मलय नहीं हैं. यहां 80 फ़ीसदी मुसलमान हैं.
आज़ादी के बाद से सुल्तान ब्रुनेई को इस्लाम के सख़्त निर्देशों की ओर ले जाते दिखे हैं.
दक्षिण पूर्व एशिया में इस्लाम के जानकार और ब्रुनेई पर करीब से नज़र रखने वाले डोमिनिक म्युलर से 2019 में बीबीसी ने बात की थी.
म्युलर ने कहा था, “सुल्तान बीते तीन दशकों में तेज़ी से मज़हब की ओर बढ़ रहे हैं. ख़ास तौर से 1987 में अपनी मक्का यात्रा के बाद से. वो कई बार कह चुके हैं कि अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक ब्रुनेई में शरीयत लाना चाहते हैं. सरकारी मुफ़्ती भी यही सोचते हैं. इस्लामी नौकरशाहों के असर को कम करके नहीं आंकना चाहिए. इस्लामी नौकरशाह लंबे समय से सुल्तानों और जनता से कहते रहे हैं कि ब्रुनेई को ‘अल्लाह का क़ानून’ लागू ही करना होगा.”
ब्रुनेई में विपक्ष नहीं, प्रेस को आज़ादी नहीं
ब्रुनेई में आज़ादी के बाद से विपक्ष की इजाज़त नहीं दी गई है. देश में कोई प्रभावशाली सिविल सोसाइटी भी नहीं है.
ब्रुनेई में अब भी 1962 में घोषित किए गए आपातकाल का शासन चल रहा है, जिसके तहत लोगों को अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है.
मीडिया खुलकर रिपोर्ट नहीं कर सकता और हदें पार करने वाले दफ़्तरों पर ताला भी लग जाता है.
ब्रुनेई में लोग आम तौर पर मेहमाननवाज़ और मददगार हैं. लेकिन शरीयत पर ‘ऑन रिकॉर्ड’ बात करने के लिए कोई तैयार नहीं होता.
इस देश में समलैंगिकों को लेकर जैसी सख़्ती है, उस पर वहां के बाशिंदों की क्या राय है?
एक महिला ने बीबीसी को 2019 में बताया था, ”सुल्तान के शब्द ही क़ानून हैं और अब सज़ा-ए-मौत नहीं होगी भले ही उसका क़ानून वजूद में हो. लेकिन इससे प्रशासन की समलैंगिक विरोधी भावना कम नहीं होगी. यह क़ानून समलैंगिक महिलाओं पर लागू नहीं होना था लेकिन फिर भी लोग मेरी सेक्शुएलिटी के बारे में जानें, मुझे यह सुरक्षित नहीं लगता.”
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