मोदी का रूस दौरा

प्रो. जैफरलॉट का मानना ​​है कि यह यात्रा रूस की चीन के साथ बढ़ती निकटता से भी जुड़ी हुई है. भारत और रूस के बीच ख़ास संबंध बनाए जाने से रूस और चीन के बीच मेल-मिलाप को कम किया जा सकता है.

मोदी 2019 में एक आर्थिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूस के शहर व्लादिवोस्तोक गए थे.

पुतिन और मोदी की आख़िरी मुलाक़ात 2022 में उज्बेकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन में हुई थी. वहीं पुतिन ने आख़िरी बार 2021 में दिल्ली का दौरा किया था.

मोदी की रूस यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी रूस को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं और देश पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं. उन्होंने उच्च स्तरीय बैठकों में भी भारी कटौती की है.

भारत का कहना है कि उसकी विदेश नीति ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ और ‘राष्ट्रीय हित’ पर आधारित है. लेकिन पश्चिमी देशों में फैली रूस विरोधी भावनाओं को देखते हुए, क्या यह यात्रा भारत के रणनीतिक साझेदार अमेरिका को नाराज़ करने वाली है?

क्या मोदी की यात्रा से नाराज़ हो सकता है अमेरिका?

अमेरिका के बाल्टीमोर स्थित जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में अप्लाइड इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर स्टीव एच. हैंके का मानना है कि रूस के भारत के साथ ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. हेन्के राष्ट्रपति रीगन की आर्थिक सलाहकार परिषद में भी रह चुके हैं.

उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर दोनों के बयानों को देखते हुए यह साफ़ है कि भारत सभी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहता है.

ख़ास तौर पर रूस के साथ. क्योंकि यह एक ऐसा देश है, जिसके साथ भारत के सोवियत काल से ही अच्छे संबंध रहे हैं.

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