ये मंदिर और यहाँ की मूर्तियाँ कलाकारी का शानदार उदाहरण हैं.
इसी खजुराहो की ओर दिल्ली से जाती ट्रेन अक्सर छतरपुर के पास रुकती है. ये कोई स्टेशन नहीं है. ये वो जगह है, जहाँ ख़ासकर मंगलवार, शनिवार को चेन खींचकर ट्रेन रोकी जाती है.
ट्रेन से बड़ी संख्या में लोग उतरते हैं. इन लोगों के लिए बस या ऑटो, टैम्पो खड़े होते हैं.
ये लोग जिस जगह जा रहे हैं, उसका नाम है बागेश्वर बाबा धाम, जहाँ 26 साल के ‘बाबा’ धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बैठते हैं.
धीरेंद्र शास्त्री फिर चर्चा में हैं. वजह- अंधविश्वास फ़ैलाने के आरोप, मीडिया कवरेज और आरोपों पर धीरेंद्र शास्त्री के जवाब.
ये पहली बार नहीं है, जब धीरेंद्र शास्त्री ख़बरों में हैं. ताली बजाते चुटीले अंदाज़, पर्चे पर भक्तों के सवाल, सनातन धर्म की बातें, चमत्कार, केंद्रीय मंत्रियों को आशीर्वाद, अजीब बर्ताव, विवादित बयान, ज़मीन पर क़ब्ज़े के आरोप… धीरेंद्र शास्त्री की शख़्सियत की कई परतें हैं.
इस कहानी में हम ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब और कहानी तलाशने की कोशिश करेंगे.
करना है. फिर पता नहीं कहाँ, एक साल के लिए ग़ायब हो गया था. लौटा तो अलग ही था. धीरे-धीरे विधायकों, बाहुबलियों का आना शुरू हुआ. आप ये समझो कि ये बना तो कांग्रेस नेताओं के कारण है पर आज जो हो रहा है, उसमें भाजपा का रोल है. वरना पाँच साल पहले तक साइकिल, मोटर-साइकिल से घूमा करता था. ”
धीरेंद्र शास्त्री की वेबसाइट पर लिखा है, ”गुरुदेव (धीरेंद्र) को अपनी पढ़ाई बचपन में छोड़नी पड़ी. तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े गुरुदेव का बचपन परिवार के ख़र्चे उठाने में बीता. फिर एक दिन दादा गुरु के आशीर्वाद से बालाजी महाराज की सेवा में जुट गए.”
इस सेवा का फल कितना मीठा है? धीरेंद्र शास्त्री की अब की ज़िंदगी जवाब देती है. धीरेंद्र शास्त्री अब प्लेन और कई बार प्राइवेट जेट से चलते हैं. भारत से लेकर लंदन तक उनका सम्मान होता है.
जब धीरेंद्र शास्त्री कहीं निकलते हैं, तो दर्जनों गाड़ियों का काफ़िला साथ चलता है. लेकिन ये सब संभव कैसे हुआ?
प्राचीन शिव मंदिर और बालाजी का मंदिर
गढ़ा में धीरेंद्र शास्त्री का जहाँ दरबार है, उसी के पास एक प्राचीन शिव मंदिर है. इसी मंदिर में एक संन्यासी बाबा होते थे, जिनकी विरासत और आशीर्वाद को आगे बढ़ाने की बातें धीरेंद्र करते दिखते हैं.
इसी शिव मंदिर परिसर में बालाजी का भी एक मंदिर है, जिसे देखने पर ये पता चलता है कि नया निर्माण है.
ऐसे भी उपलब्ध हैं, जिसमें देख सकते हैं कि कुछ साल पहले तक इस जगह पर शिव मंदिर तो था, लेकिन बालाजी का मंदिर अभी जैसा नहीं बना था.
धीरेंद्र इस जगह से कुछ दूरी पर बैठते हैं.
चंदला विधानसभा के पूर्व विधायक और मौजूदा बीजेपी विधायक राजेश प्रजापति के पिता आरडी प्रजापति ने बीबीसी हिंदी से बात की.
आरडी प्रजापति धीरेंद्र शास्त्री के ख़िलाफ़ पहले भी मुखर रहे हैं.
आरडी प्रजापति कहते हैं, ”इस जगह पर शंकर जी का मंदिर था. बगल में हनुमान जी की मूर्ति थी. धीरेंद्र के बाबा यहाँ पूजा किया करते थे. इन लोगों के पास घर द्वार कुछ नहीं था. पास में एक सामुदायिक भवन था, जिसमें ये लोग बरसाती डालकर रहते थे. पूजा पाठ करते थे. गाँव वाले मदद कर देते थे. धीरे-धीरे इन्होंने दरबार लगाना शुरू किया.”
गढ़ा के रहने वाले उमाशंकर पटेल बीबीसी से कहते हैं, ”धीरेंद्र पर बाबा की कृपा हुई, तभी से सब बदल गया.”
कई मौक़ों पर धीरेंद्र शास्त्री ने रामभद्राचार्य जी महाराज को अपना गुरु बताया है.
रामभद्राचार्य बचपन से ही नेत्रहीन हैं और उनके भक्तों में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जैसे लोग भी शामिल हैं.
यू-ट्यूब में थंबनेल यानी वीडियो प्ले करने से पहले दिखने वाली फ़ोटो काफ़ी अहम मानी जाती है.
अगर आप बागेश्वर धाम के यू-ट्यूब चैनल के वीडियोज़ पर नज़र दौड़ाएँगे, तो वो सर्च और लोगों के मिज़ाज को ध्यान में रखकर बनाए दिखते हैं. कुछ उदाहरण:-
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इन टोकन और बागेश्वर धाम में लोगों की श्रद्धा इस क़दर बढ़ रही है कि गढ़ा गाँव में ज़मीन के दाम भी तेज़ी से बढ़े हैं.
गढ़ा में दुकानें और दूसरी सुविधाएँ भी तेज़ी से बढ़ी हैं.
आलम ये है कि यहाँ आने वाले लोगों की संख्या के कारण ज़मीन के दाम काफ़ी बढ़े हैं.
जहाँ ज़मीन होती है, वहाँ विवाद की आशंकाएं होती हैं. धीरेंद्र शास्त्री भी इससे अलग नहीं हैं.
चंदला के पूर्व विधायक आरडी प्रजापति आरोप लगाते हैं, ”गढ़ा में जो सरकारी ज़मीन थी, उस पर धीरेंद्र शास्त्री ने अपना निर्माण करवा लिया.”
धीरेंद्र शास्त्री पर ज़मीन हड़पने के आरोप कुछ स्थानीय लोगों ने भी लगाया था और धरना भी दिया था और इस बारे में प्रशासनिक अधिकारियों को शिकायत भी की गई थी.
ये मामला कोर्ट तक पहुँचा और अदालत ने निषेधाज्ञा जारी करते हुए किसी तरह का हस्तक्षेप न करने का आदेश दिया था.
इस केस को दर्ज करने वाले कई लोगों में से 26 साल के एक संतोष सिंह भी थे.
संतोष सिंह ने कहा, ”इस जगह पर हमारी दुकानें थीं. एक रात ये लोग आए और दुकानें हटवा दीं. हमें पता तक नहीं चला. हम कलेक्टरेट भी गए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. हम धरने पर भी बैठे. ये जगह मंदिर के पीछे है. फिर अभी कुछ दिन पहले हमसे इन लोगों ने कहा कि ज़मीन हमें दे दो और रजिस्ट्री हमारे नाम कर दो, इसलिए अब हमारे पापा, चाचा लोगों ने लगभग 30 लाख रुपए में ये ज़मीन बेच दी है.”