संत शिरोमणि नरसी मेहता

धर्म जगत के भक्त सम्राट

भगवान श्रीकृष्ण भक्ति में सराबोर भक्तों की लम्बी शृंखला में नरसी मेहता का नाम सर्वोपरि है। उनकी निश्छल और चरम भक्ति इतनी प्रभावी रही है कि श्रीकृष्ण से सीधे सम्पर्क में रहे, उनका उनके साथ सीधा संवाद होता था। उनके भक्ति रस से आप्लावित भजन आज भी जनमानस को ढांढस बंधाते हैं, धर्म का पाठ पढ़ाते हैं और जीवन को पवित्र बनाने की प्रेरणा देते हैं। उनके भजनों में जीवंत सत्यों का दर्शन होता है। जिस प्रकार किसी फूल की महक को शब्दों में बयां करना कठिन है, उसी प्रकार गुजराती के इस शिखर संतकवि और श्रीकृृष्ण-भक्त का वर्णन करना भी मुश्किल है। उनकी भक्ति इतनी सशक्त, सरल एवं पवित्र थी कि श्रीकृष्ण को अनेक बार साक्षात प्रकट होकर अपने इस प्रिय भक्त की सहायता करनी पड़ी।
नरसी मेहता की भक्ति के अनेक चमत्कारी किस्से हैं। महान् संतकवि नरसी का जन्म 15वीं शताब्दी में सौराष्ट्र के एक नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। प्रतिवर्ष 19 दिसम्बर को उनके भक्त उनका जन्मदिन भव्य एवं भक्तिमय तरीके से मनाते हैं। उनके पिता का नाम कृष्णदास और माता का नाम दयाकुंवर था। बचपन में ही माँ बाप स्वर्गवासी हो गये थे। बालक नरसी आरंभ में गूंगे थे। आठ वर्ष के नरसी को उनकी दादी एक सिद्ध महात्मा के पास लेकर गई। महात्मा ने बालक को देखते ही भविष्यवाणी की कि भविष्य में यह बालक बहुत बड़ा भक्त होगा। जब दादी ने बालक के गूंगे होने कि बात बताई तो महात्मा ने बालक के कान में कहा कि बच्चा! कहो ‘राधा-कृष्ण’ और देखते ही देखते नरसी ‘राधा-कृष्ण’ का उच्चारण करने लगा। बालक नरसी बचपन से ही साधु-संतों की सेवा किया करते थे और जहां कहीं भजन-कीर्तन होता था, वहीं जा पहुंचते थे। रात को भजन-कीर्तन में जाते तो उन्हें समय का ख्याल न रहता। रात को देर से घर लौटते तो भाभी की प्रताड़ना सुननी पड़ती।
नरसी मेहता ने ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए’ भजन में एक बात अच्छी प्रकार से कह दी है। ‘पर दुःखे उपकार करे’ कह कर भजन में रुक गए होते, तो वैष्णव जनों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। ‘पर दुःखे उपकार करे तोए मन अभिमान न आणे रे“ कह कर हम सब में छिपे सूक्ष्म अहं को विगलित करने की चेतावनी दी गई है। उपकार का आनन्द अनुभव करना है तो आपने जो किया उसे जितनी जल्दी हो भूल जाएं और आपके लिए किसी ने कुछ किया, उसे कभी न भूलें। यह भजन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्रिय भजन है। यह भजन ही नहीं, भक्त नरसी मेहता के भावों और विचारों का भी गांधी पर गहरा प्रभाव था। प्रायः ऐसा माना जाता है कि अस्पृश्यता से पीड़ित लोगों के लिए हरिजन शब्द पहली बार गांधीजी ने प्रयोग किया था, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस शब्द का पहली बार उपयोग नरसी मेहता ने ही किया था। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह भजन जन-जन की जुबान पर था। न केवल यह भजन बल्कि उनकी हर भक्ति रचना इतनी सशक्त, सुरूचिपूर्ण है कि उससे न केवल आध्यात्मिक बल्कि मानसिक तृप्ति मिलती है। उनके भजनों में गौता लगाने पर शक्ति एवं गति पैदा होती है, सच्चाइयों का प्रकाश उपलब्ध होता है, जो हममें सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर विजय पाने की सच्ची दृृढ़ता एवं साहस देता है। वे ईश्वर से सम्पर्क के सूत्रधार थे। स्वयं परमात्मा नहीं थे, पर परमात्मा से कम भी नहीं थे। उन्होंने जन-जन को सांसारिक आकर्षण रूपी राग को मिटाकर ईश्वर के प्रति अनुरागी बनाया।

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