शिक्षा से खिलवाड़ करने वाले शिक्षकों के दाग

राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने एवं तरह-तरह के कानूनों के प्रावधानों के बावजूद आजादी का अमृत महोत्सव मना चुके राष्ट्र के शिक्षा के मन्दिर बच्चों पर हिंसा करने, पिटने, सजा देने के अखाडे़ बने हुए है, शिक्षक अपनी मानसिक दुर्बलता एवं कुंठा की वजह से बच्चों के प्रति बर्बरता की हदें लांघ रहे हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार शिक्षा में अभिनव क्रांति करने का ढ़िढोरा पीट रही है, लेकिन अपने शिक्षकों एवं शिक्षिकाओं पर सवार हिंसा की मानसिकता को दूर करने का कोई सार्थक उपक्रम नहीं कर पायी है। यही कारण है कि दिल्ली में एक प्राथमिक विद्यालय की एक शिक्षिका ने पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक बच्ची को न केवल बुरी तरह पीटा, बल्कि कैंची से वार करते हुए उसे पहली मंजिल से नीचे फेंक दिया। ऐसी क्रूर, हिंसक एवं बर्बर घटना को अंजाम देने वाली शिक्षिका को बच्चों को पढ़ाने-लिखाने लायक माना जा सकता है? बात केवल दिल्ली की नहीं है, देश के अन्य हिस्सों से ऐसे शिक्षकों के बेलगाम हिंसक बर्ताव की खबरें अक्सर आती रहती हैं, जिसमें किसी बच्चे को पीटने या यातना देने की अपनी कुंठा को ड्यूटी का हिस्सा समझ लिया जाता है। यह कैसी शिक्षा है एवं कैसे शिक्षक है?
शिक्षक का पेशा पवित्रतम एवं आदर्श माना जाता है। यह इसलिए भी कि शिक्षक के माध्यम से ही बच्चों के भविष्य की नींव तैयार होती है। यह नींव ही उनके भविष्य को मजबूत बनाने का एवं राष्ट्र को उन्नत नागरिक देने का काम करती है। लेकिन जब इस पवित्र पेशे की गरिमा को आघात पहुंचाने का काम हिंसक एवं अनियंत्रित मानसिकता, कंुठित एवं क्रूर, लोभी प्रवृत्ति के शिक्षक करते हैं तो शिक्षा के संवेदनशीलता, जिम्मेदारी एवं समर्पण के गायब होते भाव पर चिंता होना स्वाभाविक है। आज के निजी विद्यालय अपने परीक्षा परिणाम को अव्वल लाने के लिये छात्रों पर तरह-तरह के गैरकानूनी प्रयोग करने की छूट शिक्षकों को दे देते हैं। दूसरी ओर अपने निजी लाभ के लिये शिक्षक छात्रों के परीक्षा परिणामों से छेडछाड करने, कक्षाओं में छात्रों के साथ भेदभाव करने, उनको बेवजह सजा देने का दुस्साहस भी करते हैं ताकि छात्र उन शिक्षकों से ट्यूशन लेने को विवश हो सके। ऐसे हिंसक एवं लोभी शिक्षकों को कानून ही उचित सजा दे सकती है।

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