पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती

जय जगन्नाथ एवं सस्नेह हरि-गुरू स्मरण !

विश्व ह्रदय भारत के बिहार राज्यके मिथिलांचल की पवित्र धरा पर स्थित तत्कालीन दरभङ्गा (वर्तमानमें मधुवनी) जिलान्तर्गत हरिपुर बक्शीटोल नामक ग्राममें आषाढ कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार, रोहिणीनक्षत्र, विक्रम सम्वत् 2000 तदानुसार 30 जून 1943 ई.को श्रोत्रियकुलभूषण दरभङ्गा नरेशके राजपण्डित श्रीलालवंशी झा जी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती गीता देवीजी को एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ जिनका नाम नीलाम्बर झा रखा गया। वही नीलाम्बर झा वर्तमान पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती महाभागके नामसे पूरे विश्व में ख्यापित हैं।

वैशाख कृष्ण एकादशी, गुरुवार, विक्रम संवत् 2031 तदनुसार 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में धर्मसम्राट स्वामी करपात्रीजी महाराज जी के चिन्मय करकमलोंसे आपका सन्यास सम्पन्न हुआ। सन्यासके बाद उन्होंने आपका नाम निश्चलानन्द सरस्वती रखा।

जैसे की आप सभी को विदित है कि आज से 2529 वर्ष पूर्व भारत में ऐसा भयावह समय उपस्थित हुआ था , जब सनातन वैदिक धर्म एवं यज्ञ यागादि कर्म एकदम उपेक्षित हो गये थे । तब अनीश्वरवादियों द्वारा वैदिक धर्मों का निषेध करके वेदादि धर्मशास्त्रों के प्रति अनास्था उत्पन्न कर दी गयी थी एवं वर्णाश्रमधर्म के सनातन – वैदिक सिद्धांतों के प्रति अनिश्वरो ने सर्वत्र विद्वेष फैला दिया था । त्याग का स्थान भोगवाद ने ले लिया । तत्कालीन शासक भी विपरीत प्रभाव में बह गए थे । वैसी विकट परिस्थिति में आदि शंकराचार्य जी ने राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर सनातन – वैदिक धर्म की पुन:प्रतिष्ठा की थी।पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्दसरस्वती

अखण्ड हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करने वाले सनातन – वैदिक धर्म के सार्वभौम श्रीमज्जगद्गुरू आदि शंकराचार्य जी द्वारा प्रतिष्ठित ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ की शंकराचार्य परम्परा में 145वें शंकराचार्य एवं वर्तमान समय में सनातन-आर्य-वैदिक धर्म के ध्वजावाहक युगावतार – युगप्रवर्तक – युगपुरुष पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी को श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठ के तत्कालीन पूर्वाचार्य श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निरञ्जनदेव तीर्थजी महाराज ने माघ शुक्ल पंचमी तदानुसार 9 फरवरी 1992 को अपने करकमलोंसे आपको पुरीपीठके 145वें श्रीमज्जगद्गुरु शङ्कराचार्यके पदपर अभिषिक्त किया*।

आप सभी की जानकारी के लिए हम बताना चाहते हैं कि आदिशंकराचार्य एवं उनके द्वारा प्रतिष्ठित चार आम्नाय पीठों के परम्परा से अधिकृत शंकराचार्य के अवतार का क्या प्रयोजन होता है – कालक्रम से जो ज्ञान-विज्ञान विलुप्त हो जाता है उसे पुन: प्रकट करना , विकृत जान विज्ञान को विशुद्ध करना और सूत्रशैली में प्राप्त जो ज्ञान-विज्ञान है उसे विशद करना तथा व्यासपीठ और शासनतन्त्र का शोधन करके उनमें सामञ्जस्य साधकर, अराजकतत्वों का दमनकरके ; “सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण , स्वस्थ, सर्वहितप्रद व्यक्ति तथा समाज की संरचना” के उद्देश्य से “धर्मनियन्त्रित , शोषणविनिर्मुक्त , पक्षपातविहिन एवं सर्वहितप्रद सनातन शासनतन्त्र की स्थापना” करना – यह आदिशंकराचार्य जी एवं उनके द्वारा स्थापित चार आम्नाय पीठों में परम्परा से प्रतिष्ठित एवं अधिकृत शंकराचार्य के आविर्भाव का प्रयोजन होता है ! संक्षेप में कहें तो शासकों पर शासन करना शंकराचार्य का दायित्व होता है।

आदिशंकराचार्य जी द्वारा रचित “मठाम्नाय महानुशासनम्” में वर्णित उपरोक्त दायित्वों का निर्वहन करते हुए एवं अखण्ड हिन्दू राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य की पूर्ति के लिए अनन्तश्री विभूषित श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी इस वृद्धावस्था में भी ट्रेन के माध्यम से गर्मी सर्दी की तितिक्षा सहन करते हुए परिव्राजक मर्यादा का पालन करते हुए राष्ट्रोत्कर्ष अभियान के अन्तर्गत वर्ष में 250 से भी अधिक दिन भारत और नेपाल की यात्रा करते हैं !

पूज्य शंकराचार्य जी द्वारा भारत के पूर्व में स्थित भगवान् जगन्नाथ के धाम पुरी में स्थित श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठ में गत वर्ष के में चतुर्मास प्रवास 2021 ( जुलाई-अगस्त) में उद्घोषणा हुआ है कि साढ़े तीन साल की अल्पावधि में भारत हिंदू राष्ट्र होगा जिसके लिए महाराज श्री के अनुसार 80 प्रतिशत परमाणु भगवान् बना चुके हैं।

पूज्य शंकराचार्य जी के सान्निध्य में इस अभियान के शेष 20 प्रतिशत कार्य के सम्पादन हेतु उनके द्वारा स्थापित और मार्गदर्शित पीठपरिषद् संस्था के अन्तर्गत आदित्य वाहिनी, आनन्द वाहिनी द्वारा “अन्यों के हितका ध्यान रखते हुए हिन्दुओंके अस्तित्व एवं आदर्शकी रक्षा तथा देशकी सुरक्षा और अखण्डता के प्रति कटिबद्धता” के उद्देश्य से सम्पूर्ण राष्ट्र से सुशील, ओजस्वी, शूर, नैतिक तथा प्रतिभावान व्यक्तियों का चयनकर और उन्हें प्रशिक्षण प्रदान कर मठ-मन्दिरों को सेवा, सत्संग, रक्षा, अर्थ, शुचिता , स्वच्छता, सुन्दरता, पवित्रता, शील, स्नेह, धर्म और मोक्ष का संस्थान बनाकर धर्मसभा-सङ्गोष्ठी , एवं हिन्दू राष्ट्र अधिवेशनों के माध्यम से स्वस्थ वैचारिक क्रांति का सूत्रपात किया जा रहा है।

जैसे मानव शरीर में ह्रदय में विकृति आने के कारण शरीर के अस्तित्व को ही ख़तरा हो जाता है ऐसे ही भारत विश्व का ह्रदय है और भारतीय सभ्यता के प्रशस्त सनातन वैदिक मानबिन्दुओं को धूमिल करने के कारण पूरा विश्व अशान्त है और विनाश के कगार पर खड़ा है!

 

इसी क्रम में पहला अधिवेशन भारत के पश्चिम में स्थित भगवान् द्वारिकाधीश के धाम में 18 दिसम्बर 2021 को प्रथम हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का आयोजन किया गया था*।

दूसरा हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का आयोजन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के उत्तर में स्थित नेपाल में भगवती सीता के धाम जनकपुर में रामनवमी के दिन 10 अप्रैल को किया था जिसमें भारत और नेपाल के कई प्रान्त के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इसके बाद नेपाल के सात अन्य जगहों में एवं भारत के बिहार , आसाम , अरुणाचल प्रदेश, बंगाल , झारखंड , उत्तर प्रदेश प्रान्तों में धर्मसभा – हिन्दू राष्ट्र अधिवेशनों का आयोजन हुआ । उसी क्रम में भगवत्पाद शिवावतार आदि शंकराचार्य जी के प्राकट्य दिवस वैशाख शुक्ल पंचमी की पूर्व संध्या पर दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में भव्य तृतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन एवं 30 नवम्बर गीता जयन्ती के अवसर पर कुरुक्षेत्र में चतुर्थ हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का समायोजन किया गया*।

ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य अनन्तश्री विभूषित स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में माघ मेला प्रयागराज में वंसत पंचमी के शुभ अवसर पर बहुत दिव्य एवं भव्य पंचम हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन का समायोजन हुआ साथ ही साथ पूज्य शंकराचार्य जी का 32वां पट्टाभिषेक उत्सव भी अनेक साधु संतों – महामण्डलेश्वरों एवं भारत के विभिन्न प्रान्तों से आए सैकड़ों भक्तों की उपस्थिति में बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया गया!

प्रमुख रूप से उपस्थित काशी से दण्डी स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी अपने दण्डी स्वामी शिष्यों के साथ एवं दण्डी स्वामी श्री नर्मदानन्द , आगरा से श्री त्रयम्बकेश्वर चैतन्य ब्रह्मचारी जी तथा डॉ॰ भारत भूषण पाण्डेय राष्ट्रीय अध्यक्ष जनसंघ पार्टी, प्रतापगढ़ से डॉ॰ शिवशंकर तिवारी , प्रयागराज से आचार्य रामशुक्ल शुक्ल जी एवं महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ , मध्यप्रदेश, दिल्ली, बिहार , तेलंगाना, गोवा तथा अन्य राज्यों के प्रतिनिधियों ने अपने अपने वक्तव्य रखे !

जिस प्रकार स्वतंत्रता संग्राम के समय पत्रकारों ने जन- जागृति कर भारत को आज़ादी दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ठीक उसी प्रकार श्रेष्ठ भारत – अखण्ड भारत – हिन्दू राष्ट्र  के निर्माण में अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए पत्रकारों को आगे बढ़ कर इस अभियान के व्यापक प्रचार प्रसार में अपना योगदान भागीदारी सुनिश्चित करना होगा।

हम आपके माध्यम से सभी धर्मप्रेमी राष्ट्रभक्त बंधुओं का आवाह्न करते हैं कि आप अपने आत्म कल्याण एवं विश्व के कल्याण की भावना से पूज्य शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी के इस अभियान में सम्मिलित होकर अपने जीवन को कृतार्थ करें । सिद्ध पुरूष के मार्गदर्शन में सबका कल्याण सुनिश्चित है।

श्री प्रेम चन्द्र झा अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रभारी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष आदित्य वाहिनी

धर्म की जय हो ! अधर्म का नाश हो!
प्राणियों में सद्भावना हो ! विश्व का कल्याण हो!
गऊ माता की जय हो ! गोहत्या बंद हो!
भारत अखण्ड हो!
सर्वभूत ह्रदय धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज की जय हो ! हर हर महादेव!

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