अंग्रेजी के कारण हिंदी का प्रसार बाधित हो रहा है

जिस तरह देश की विविध अनुसूचित भाषाओं के लोग यह सोचते हैं कि हिंदी की वजह से उनकी भाषा का प्रभाव कम हो रहा है, उसी तरह हिंदी सेवियों की एक बड़ी तादाद ऐसा मानती है कि अंग्रेजी के कारण हिंदी का प्रसार बाधित हो रहा है। लेकिन खुद अंग्रेजी का क्या हाल है? जब हम एक पूर्ण और सशक्त भाषा की बात सोचते हैं, तो हमारे जेहन में उसके कुछ निश्चित प्रतिमान उभरते हैं। जैसे, उसकी एक विकसित लिपि होगी, ध्वनि संसार होगा, शब्दों का विशाल भंडार होगा। शब्दों की वर्तनी, उनका उच्चारण और अर्थ सुनिश्चित होगा। व्याकरण होगा। उसका अपना साहित्य होगा, जिसे पढ़ने वाले लोग होंगे। और उसे सत्ता (आर्थिक-राजनीतिक) का समर्थन प्राप्त होगा। क्या इन पारंपरिक मानकों पर आज की कोई भी भाषा दावे से खरी उतरती है?

इमोजी का बोलबाला

अंग्रेजी का प्रयोग करने वाली नई पीढ़ी बहुत तेजी से इमोजी की तरफ बढ़ रही है। कोई बात अच्छी लगे तो एक पूरा वाक्य लिखने की जरूरत नहीं है। किसी बात की आलोचना करनी हो और इस तरह से करनी हो कि दूसरा पक्ष आहत न हो, तो उसके लिए कोई अच्छा शब्द ढूंढने की जरूरत नहीं है। यहां तक कि इमोजी से पूरे प्रेम पत्र लिखे जा सकते हैं। हम भाषा के संदर्भ में आर्थिक प्रभुत्व की चर्चा करते हैं। अब बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कारोबारों और उत्पादों के साथ भी इमोजी इस्तेमाल होने लगे हैं। ऐपल, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, सैमसंग, ट्विटर, फेसबुक, एलजी, एचटीसी, बर्गर किंग और पेप्सीको जैसी तमाम कंपनियां इमोजी इस्तेमाल कर रही हैं, और उनके साथ उनके ग्राहक भी।

उनके बीच एक नई भाषा विकसित हो रही है। यानी रोमन लिपि और शब्दों की सही वर्तनी का महत्व खत्म! जब भी कोई नई भाषा विकसित होती है, वह पारंपरिक भाषाओं का दायरा संकुचित करती है। समाज में ऐसे कई तरह के छोटे-मोटे संकेत विकसित होते हैं जो समय के साथ प्रचलन से बाहर हो जाते हैं- यह सोच कर हम इमोजी की भाषा को नजरअंदाज नहीं कर सकते।

यह लोगों के बीच का भाषिक संवाद बदलने का एक नमूना है। इसके और भी पक्ष हैं। जब हम ऑक्सफोर्ड और वेब्स्टर के शब्दकोशों में सही वर्तनी और हिज्जे ढूंढ रहे होते हैं, तब इंटरनेट पर भेजे जा रहे संदेशों में उन शब्दों के संक्षिप्त रूपों का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा होता है। वहां सिर्फ ‘आय लव यू’ के लिए इलू (आयएलयू) और ‘फियर ऑफ मिसिंग यू के लिए फोमू’ (एफओएमयू) ही नहीं बन रहा है, एक पूरी शब्दावली विकसित हो रही है, जिसमें बीटुबी (बिजनेस टु बिजनेस), केपीआई (की-परफॉर्मेंस इंडीकेटर), सीपीएम (कॉस्ट पर थाउजैंड) और यूजीसी (यूजर जेनरेटेड कॉन्टेंट) जैसे प्रयोग भी शामिल हैं। ये नए संक्षिप्त शब्द पहले के अनेक शब्दों से बने पूरे फ्रेज को विस्थापित कर देते हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *